उठ, चल कुछ अब विचार कर..
खामियों को अपने लिये स्वीकार कर..
अड़चनों से तू इक क़रार कर..
कर लेगा फ़तह तू अपने ही युद्ध को
संघर्षो का सामना हर बार कर..
उठ, चल कुछ अब विचार कर..
तेरी अड़चने तुझ पर हावी है
तो क्या हुआ..
हर बार अपने लिये तू काम कर...
सोच मत तू अंतिम परिणाम को
इस क्षण का तो एहसास कर...
@आखिरी पन्ना
© दीपक
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